“ हेरायल मित्र “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल “
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हे यौ ! केना दन मन करैत अछि ,
नहि बुझलहुं नहि सोचलहुं ,
आहाँ क मित्र हम बना लेलहुं !
कहाँ बुझल छल ,
आहाँ मित्र बनि कोनों ,
नेपथ्य में घुसिया जायब !
दर्शन त दुर्लभ भ जायत ,
बस साल भरि कोनों खोज खबरि नहिं !
हाँ संख्या त हमर बढल अछि ,
हमहूँ विशाल सैन्य क सेनापति
बनि गेलहुं देखाबय लेल !
पत्र लिखी हारि गेलहुं ,
मैसेंजर मे लिखी -लिखी
सहो हम हारि गेलहुं !
कुंभकर्ण नींद सं ग्रसित
अपन ठेकान बदलैत गेलाह ,
परंच साल मे एक बेर दर्शन
हुनक भ जाइत अछि !
अपन जन्मदिन पर हुनक
नींद टूटि जाइत छनि ,
आ सबकेँ “ थैंकयू “ कहि
पुनः विलीन भ जाइत छथि !!
सजगता ,सहयोगिता आ विचारक
आदान -प्रदान सं
मित्रताक मे जान अछि
भूमिगत रहि केँ मित्रता
निष्प्राण अछि !
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका