हेमवतीनन्दन रुपी मेरा सूरज
ऐ सुर्य देव,तुम्हारा अवसान हर साझं को होता है,
लेकिन हर सुबह,तुम्हारे प्रकाष से शुरु होती है।
इस रोज मेरा सुरज भी डूबा,
सत्रह मार्च,उन्नीस सौ नव्वासी के दिन,
क्या तुम बता सकते हो,उसका उदय कब होगा,
शायद नहीं बता पाओ,और बताओगे भी क्यों,
आखिर वह तुम्हारा प्रतियोगी जो बन बैठा था,
लेकिन हे भानु प्रताप, तुम्हारा प्रकाष तो एक प्रहर को ही प्रकाषित करता है,
किन्तु,मेरा सूरज,दिन रात प्रकाष बिखेरता था,
इस लिए यदि समझो,और सदाशयता के नाते,
कुछ बता सको तो,जरुर बता जाना।
हम उसके,प्रकाष के बिना,अन्धकार में हैं,
और यदि कहीं,तुम्हे,नजर आये मेरा सूरज,
तो बताना उसे,इतनी भी क्या जल्दी थी,
जो हमें मझंधार में छोड गये हो,तुम,
बिना तुम्हारे हम बिखर रहे हैं,भटक रहे हैं,
ऐसा नहीं,कि हम भूल घये हों तुम्हारा सन्देश
हमें याद है,वह बाणी,और बचन,
लेकिन मंजिल तक पंहुचाने के लिए,
हमें दिशा कौन दिखायेगा,
कौन बतायेगा,हमें भले➖बुरे का फर्क,
क्योंकि अब ऐसा प्रखर ब्यक्तित्व, बुद्धि चातुर्य,
और पूर्ण सकंल्पशीलता,किसी और मे नजर नहींआती, जो तुम में थी,
वह जो कभि,किसी जाति और मजहब में नहीं बंटा,नही रहा जिसे कभी सत्ता का मद,
और जो कभि दुर्दिनों मे भी नहीं टूटा,
बौनौं को जलन थी जिसके कद से,
जो सिर्फ ब्यक्ति नहीं रह गया था,
बन गया था एक सस्थां,
हे ईश्वर,मेरे उस बहुगुणा,रुपी सूरज का,
पता लगाना,और कहना उससे,
मैं तुम्हारे उदय कि प्रतिक्षा में हुँ,
हे भाष्कर, तुम्हें,
और मेरे हिम नन्दन को शत शत नमन।
बहुगुणा जी कि जन्म शती पर भाव पूर्ण स्मरण