हृदय द्वार (कविता)
कहां कोई पहुंच पाया है
मेरे हृदय के उस भाव तक
जहां मैंने तुझे स्थान दिया
समझा मैंने तुम्हें
मेरी वेदना की औषधि की तरह
जिसकी पहचान हमें भी नहीं होती
मगर जो उस दुख को संभाल पाये जिसकी पहचान मुझे भी ना हो
हर किसी को मैंने यह अधिकार नहीं दिया की पूछ सके वह मेरे दिल का हाल
या फिर मैं बता सकूं
उसको अपने हृदय की वेदना
जो संभाल सके मेरे टूटे मन को
हर किसी को मैंने नहीं दिया ये जताने का हक
जिसका साथ हृदय को तृप्त करें
या फिर मुझे तोड़ कर रख दे
एक आत्मिक जुड़ाव था तेरे साथ
जो कौन भला पहचान पाता
और शायद तुम भी नहीं पहचान पाए
मेरी आंखों की थकान का कारण
मेरे चेहरे के भाव
मेरे टूटे मन का कारण
यूं तो कहने को भीड़ है मेरे पास
जो चलती है हर पल मेरे साथ
मगर हर कोई इस ह्रदय में नहीं बसता
तुम हृदय के उसे भाव में बसे
जहां कोई डेरा ना कर पाए
मगर तुमने न समझा इस रिश्ते को
इस पवित्र प्रेम को
सिर्फ एक छलावा किया
तुम्हें मालूम ही नहीं शायद
हृदय के द्वार हर किसी के लिए नहीं खोले जाते
एक पवित्र प्रेम एक पवित्र भाव एक पवित्र एहसास
के मन को तुम जान ही नहीं पाए शायद कि व्यक्ति अपना अपमान सह सकता है मगर अपनी पवित्र आत्मा को
अपनी पवित्र भावना को आहत नहीं कर सकता