हृदय दान
हृदय दान
हृदय दान कर मन खुश होता।
सहज लगाना इसमें गोता।।
यही सुधर घर प्रेम बसेरा।
इसे बना लो अपना डेरा।।
कोई कुछ भी नहीँ कहेगा।
यह तेरा इक मात्र रहेगा।।
जान इसे यह स्वर्णिम घर है।
बस तेरा क़ब्ज़ा इस पर है।।
यह तुझको ही दे डाला है।
तू ही स्वामी रखवाला है।।
युगों -युगों तक इसमें रहना।
कोई कुछ बोले तो कहना।।
किसकी हिम्मत जो आ जाये।
चढ कर अपना रंग जमाये।।
यह तेरा है सदा रहेगा।
तेरा बनकर सदा बनेगा।।
लिखा हुआ है नाम “प्रीति घर”।
रग-रग कण-कण भावुक प्रियकर।।
मधुरिम अति पावन यह शुभकर।
रहो इसी में हरदम प्रियवर।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।