हूँ मैं
आज खुद पर कुछ लिखने की इच्छा हुई ।
ये कुछ पंक्तियाँ मेरे जीवन के बारे में।
बुझी-बुझी सी जीवन मेरी ,
खुद भी अबूझ पहेली हु मैं ।
घर -द्वार और ताल- नहर नहर है पर,
खुद ही खुद की सहेली हूँ मैं।
आँखों में है आँसू सागर जितना ,
फिर भी सूर्य- सी अकेली हूँ मैं |
कोई न देखना चाहता जिसे,
धूलों में पड़ी चमेली हूँ मैं |
बुझी – बुझी सी जीवन मेरी
खुद भी अबूझ पहेली हूँ मैं।
यह कविता स्वरचित है तथा मेरी कल्पनाओं और मेरी जीवन पर आधारित हैं।
द्वारा-खुशबू खातून