हुसैन
लघुकथा
शीर्षक – हुसैन
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हिन्दू मुस्लिम दंगो से ये शहर एक दम से थम सा गया था, कोई भी किसी दूसरे समुदाय से बात करना तो दूर उनकी तरफ देखना भी नागुजार समझता … एक दूजे के त्योहारों को एक साथ मनाना, सुख दुख में एक साथ खड़े रहना, होली के रंग सबसे पहले मुसलमान लगाते, और ईद की सेवंईयाॅ सबसे पहले हिंदू ही चखते… शायद ये सब बातें बीते दौर की हो गई है l
आज मोहर्रम की दस तारीख यानी मातम का दिन, रहमान और उसके दोस्तों को ताजिए का जुलूस निकालना था… पूरे मोहल्ले में मातम का दिन, सभी प्रदर्शन कर रहे थे.. रहमान भी अपने शरीर को पीट पीट कर प्यारे नवासे हुसैन को याद कर रहा था….
तभी एक ओर से आ रही चीख पुकार सुनकर, रहमान उस ओर दौड़ा… पास जाकर देखा तो रामदीन काका को कुछ खंजरधारी लोग घेर कर खड़े हुए थे ओर काकी फफक फफक कर रो रही थी…
” क्या हुआ, छोड़ो इन्हें” – रहमान दहाड़ा
” तुझे क्या पड़ी है रहमान इस काफिर के लिए, हम मुसलमानों का कितना खून बहा है इन हिंदुओं की वजह से ” – उनमें से एक ने कहा l
” मुसलमान नहीं है तो क्या हुआ एक सच्चे इंसान तो हे, जब मै छोटा था तब कितनी बार दूध पिलाया है इस काकी ने, अरे जुनैद, शोएब, शमीम, तुम भी भूल गए कि इन्होने अपने बच्चों और हम सब में कभी फर्क नहीं किया ” – रहमान ने कहा l
” लेकिन रहमान इन लोगों की वजह से हमारे लोग मारे गये उसका क्या? ” भीड़ से आवाज आई l
“दंगो में इमरती नहीं बटती चचा, हमने अपने परिवार को खोया है और इन्होने भी अपने परिवार को…ओर आज तो वैसे भी नेकी का दिन है, आपको पता नहीं क्या हजरत मोहम्मद साहब ने फरमाया है कि मुहर्रम में किए गए नेक काम, तुम्हारे द्वारा किए गए गुनाहों को माफ कर देते हैं…” – रहमान ने कहा तो सभी की नजरें झुक गई, खंजर हाथों से फिसल गए ओर देखते ही देखते सभी ने रामदीन काका को गले से लगा लिया l
यह देख रहमान की आंखे भी खुशी से नम हो गईं ओर ऊपर बाले का शुक्रिया अदा करते हुए कहा -” या खुदा आज तेरा एक सच्चा बंदा हुसैन बनने से बच गया…
राघव दुबे
इटावा (उo प्रo)
8439401034