हुश्न
हुश्न आतिश है,
निगाहें उनकी खंज़र है।
उनकी एक अंगड़ाई
कयामत सी बरपाई
कितने दिल टूट गए
आशिक़ सारे लूट गए
हर तरफ मुर्दनी-सी,
तबाहियों का मंजर है।
वो तो है रहगुज़र
मय्यतों की किसको फ़िकर
हर आरज़ू से बेखबर
मिन्नतें तमाम बेअसर
पनपी नहीं मोहब्बत,
जिगर उनका बंजर है।
-©नवल किशोर सिंह