हुनर
हुनर
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जीवन
कैसा सफ़र है
कहीं हरियाली
तो कहीं
पतझड़ का असर है
जीने की अन्तहीन ख़्वाहिश
पर ज़िन्दगी मुख़्तसर है
ज़मीं से आसमाँ तक
लम्बा सफ़र है
ऊँची-नीची राहें
पथरीली डगर है
हर दिशा, हर कोण का
जाने क्या असर है
चढ़ाव से भयानक उतार
और.. उतार से भयानक
समतल जीवन
जिसमें न जाने क्या-क्या
रहा बिखर है
उम्मीदों की मौत
ख़्वाहिशों का क़त्ल
इच्छाओं की अकाल मृत्यु
संवेदनाओं की शून्यता
और…ज़िन्दगी की
कभी पकड़ में न आने वाली
भागमभाग
इन सभी के बीच
‘तनहा’ मन और
जिजीविषा के साथ
ज़िन्दा रहना ही
हुनर है।
©-डॉ० सरोजिनी ‘तनहा’