हुनर
वक़्त बेवक़्त बदल जाने का हुनर जानते हो
हमसे फिर भी इस तरह नज़रें ना चुराया करो
जानते हैं हम कोई मजबूरी ही होगी जनाब की
फरेबी नही हो बस इसका यकीन दिलाया करो
कुरेदने की जख्मों को नही है आदत हमारी
जमाने के दिये जख्म हमसे तो न छुपाया करो
ये मानते हैं कि दफन हैं कईं राज़ सीने में
मगर तन्हाई में कभी हमको तो बताया करो
यूं छुप छुप कर अश्क ना बहाओ अकेले में
महफिलें अब भी सजती हैं तुम भी आया करो