हुनर आता नहीं सबको…
दरम्यां दूरिया इतनी, न बढ़ने दे ज़हर,
समन्दर छटपटा कर भी, किनारा छू नहीं पाये!
लौटकर आयेगा वो शख्श,जब देखेगा आईना,
कुछ पल तो ठहर क्या पता,आके लिपट जाये!
ये बाँहों के दराजें खोल कर रख्खो जनाब,
भटकता शख्श वो जाने कहां किस ओर से आये!
हुनर आता नहीं सबको, किसी के दिल में रहने का,
दिल-ऐ-नादान से शिकब-गिला फिर क्या किया जाये !!
✍️ लोकेन्द्र जहर