हुई बरसात टूटा इक पुराना, पेड़ था आख़िर
हुई बरसात टूटा इक पुराना, पेड़ था आख़िर
घनी थी छाँव जिसकी फूल-फल देने में था माहिर
कभी सोचा न था, जीना पड़ेगा, यार तेरे बिन
जहां रोता है मेरे साथ, क्यों होता मुझे जाहिर
महावीर उत्तरांचली
हुई बरसात टूटा इक पुराना, पेड़ था आख़िर
घनी थी छाँव जिसकी फूल-फल देने में था माहिर
कभी सोचा न था, जीना पड़ेगा, यार तेरे बिन
जहां रोता है मेरे साथ, क्यों होता मुझे जाहिर
महावीर उत्तरांचली