*हुई दूसरी बेटी (गीत)*
हुई दूसरी बेटी (गीत)
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हुई दूसरी बेटी, क्या महसूस किया सुनकर ?
(1)
‘आया’ तो ठहरी अनपढ़, ठोकर दहेज की खाई
फिर से बेटी हुई, खबर से आई उसे रुलाई
दे दी गई बधाई, पर भीतर-ही-भीतर डर
(2)
दादी-बाबा रोए, कैसे अब यह वंश चलेगा
चौथेपन में बिना पौत्र के, अब तो बहुत खलेगा
कहने को तो हॅंसे, रहे पर करते अगर-मगर
(3)
बेटी यह नवजात, नए युग की थी छटा अनूठी
बोली बेटे-श्रेष्ठ, हो चुकी हर गाथा अब झूठी
भर दूॅंगी गौरव से, माता तथा पिता का घर
(4)
मुझे बचाना और पढ़ाना, दोयम कभी न मानो
मुझमें ही बस रही सृष्टि, मैं जगजननी यह जानो
युग-निर्माता हूॅं मैं, मेरी अभिनव सृजित डगर
हुई दूसरी बेटी, क्या महसूस किया सुनकर ?
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उ. प्र.)
मोबाइल 99976 15451