हुआ साहित्य का ह्रास !
हुआ साहित्य का ह्रास !
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किसी प्रतियोगिता में लिया था भाग मैं आज !
सृजन करी थी मैंने दिए विषय पे कुछ ख़ास !
टकटकी लगा रखा था मैंने बंधी थी जो आस !
क्योंकि काफ़ी चिंतन कर किया था मैंने प्रयास!
पर निर्णायक मंडल ने मुझे नहीं किया है पास !!
फल सुनने के बाद से ही मैं हूॅं बहुत ही उदास !
क्यों नहीं पसंद आया उन्हें मेरा ख़ास अंदाज़ !
खामखा किया है उन्होंने मुझको इतना निराश !
सुंदर लेखनी पर भी क्यों नहीं किया मुझे पास??
मुझे तो अपनी लेखनी पर कब से ही है नाज़ !
हमेशा से लिखता आया हूॅं बची रही है लाज !
क्या अब नहीं कर पाऊंगा इस विधा पर राज !
पता नहीं क्यों ऐसी कुछ घटना घटी है आज !!
सोचता हूॅं हट जाऊं या फिर से करूं प्रयास !
ये साहित्य तो रहती है सदा मेरे ही आसपास !
क्यों नहीं आती सदैव मेरी रचित सबको रास !
ऐसी करतूतों से ही होता है साहित्य का ह्रास !
समुचित मूल्यांकन बिन हुआ साहित्य का ह्रास!!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 06 जनवरी, 2022.
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