हीरा समझा जिसे अनमोल वो पत्थर निकला
सारा अनुमान गलत मेरा सरासर निकला
हीरा समझा जिसे अनमोल वो पत्थर निकला
मुस्कुराहट पे फिदा जिसकी ज़माना भर था
आँखों में उसके भी लहराता समंदर निकला
दिल मेरा चीर दिया है जफ़ाओं ने उसकी
प्यार समझे थे जिसे तेज़ वो खंजर निकला
मुझको रहने न दिया तन्हा कभी जीवन में
रोज तन्हाइयों में यादों का लश्कर निकला
कर्म की दौड़ में आगे रही फिर भी हारी
और दुश्मन भी मेरा अपना मुकद्दर निकला
बाग फूलों का लगाया बड़े दिल से मैंने
ऐसा उजड़ा कि न आँखों से वो मंजर निकला
‘अर्चना’ आपदा आई थी चली भी वो गई
मेरे दिल से नहीं अब तक भी मगर डर निकला
18-05-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
756