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19 May 2020 · 1 min read

हीरा समझा जिसे अनमोल वो पत्थर निकला

सारा अनुमान गलत मेरा सरासर निकला
हीरा समझा जिसे अनमोल वो पत्थर निकला

मुस्कुराहट पे फिदा जिसकी ज़माना भर था
आँखों में उसके भी लहराता समंदर निकला

दिल मेरा चीर दिया है जफ़ाओं ने उसकी
प्यार समझे थे जिसे तेज़ वो खंजर निकला

मुझको रहने न दिया तन्हा कभी जीवन में
रोज तन्हाइयों में यादों का लश्कर निकला

कर्म की दौड़ में आगे रही फिर भी हारी
और दुश्मन भी मेरा अपना मुकद्दर निकला

बाग फूलों का लगाया बड़े दिल से मैंने
ऐसा उजड़ा कि न आँखों से वो मंजर निकला

‘अर्चना’ आपदा आई थी चली भी वो गई
मेरे दिल से नहीं अब तक भी मगर डर निकला

18-05-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
756

2 Likes · 1 Comment · 364 Views
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