हीन हो संवेदना से चल रहा है आदमी
गीत…..
हीन हो संवेदना से चल रहा है आदमी
सिर्फ ईर्ष्या-द्वेष में जल रहा है आदमी…
कामनायें दे रही पीड़ा निरन्तर मौन हो
जानते सब ही मगर पूछते कि कौन हो
आ शिखर पर मगर ढल रहा है आदमी
हीन हो संवेदना से चल रहा है आदमी…..
चाहता है वह गगन से चाँद-तारे छीनना
और धरती की धरोहर एक-एक बीनना
हो रही मंशा कलुष छल रहा है आदमी
हीन हो संवेदना से चल रहा है आदमी….
लोभ- लिप्सा का नहीं वास्तव में अंत है
दुनियादारी में कहाँ दिखता कोई संत है?
हाथ देखो हर समय मल रहा है आदमी
हीन हो संवेदना से चल रहा है आदमी….
मर रही इंसानियत गुमनाम है यह खबर
बढ़ रहा इंसान हो बेईमान हर-दिन रबर
वंचना के दलदलों में हल रहा है आदमी
हीन हो संवेदना से चल रहा है आदमी….
आज होता ही नहीं दृढ़ कहीं विश्वास है
क्या पता किस रूप में भेड़िया पास है ?
युग-युगों से जयी बदल रहा है आदमी
हीन हो संवेदना से चल रहा है आदमी….
आज ईष्या-द्वेष में जल रहा है आदमी
हीन हो संवेदना से चल रहा है आदमी…..
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
सर्वाधिक सुरक्षित