खींच तान
यहां सबको ही
अपने हिस्से में
कुछ ज्यादा चाहिए,
चाहे वो समाज हो,
निज परिवार हो या
हमसे जुड़े रिश्ते ।
ये कुछ ज्यादा की
चाहत में जो
खींच तान हुई है ।
दर्द रिस आया है
रक्त बनकर ।
इतना रक्त निचोड़ा
देह से, कि अब देह
मात्र अवशेष पिंजर
से कुछ अधिक नहीं ।
इस हिस्से बांट में
मेरे हिस्से में
मैं कहीं बची ही नहीं ।
भीतर बैठा मन
सह रहा सब चोट ।
जब उसको न दिखी
बचने की ओट
तो भय के मारे
आंखों की सींखचों को
तान कर पकडे हुए,
अश्रु बहाते हुए,
बस देह से मुक्त
होने की प्रतीक्षा में है।