हिस्टीरिया
माँ मैं तुम्हारी बेटी आज तुमसे रूठकर खो जाऊँगी।
माँ गंगा के पवित्र गोद में सिर रखकर सो जाऊँगी।
तुमने वो दुल्हा वाला खिलौना नहीं दिया न इसलिए।
तुमने राजकुमार आयगा वाला-झूठ कहा था,इसलिए।
मेरे इर्द-गिर्द खामोशी है माँ,तुम्हारे इर्द-गिर्द पीड़ा होगी!
तट पर बने गुफाओं से मेरा सौभाग्य सखी सी आएगी।
गुफाओं से अँधेरा दहशतगर्दों जैसा निकल आया था.
फैलकर और धरती में मेरे आस को निगल आया था.
चांदनी सर्द से डरी,सहमी एक आगोश की तलाश में
चाँद मुझे क्या सहलाता,कहता, खुद दहल आया था.
गहराती ठंढी रात में मेरे बदन के शिराओं में था वो आग
जो सूरज के क्रोड़ में हाईड्रोजन से गल, पिघल आया था.
उस नीरव निविड़ अंधकार में नींद शत्रु सा चिढ़ाता था.
किसी ब्याह का धुन मेरे झुमकेहीन कानों में बजाता था.
तारों से भरी रात में रात का सौन्दर्य रुक्ष सा ही था.
मेरे गली में वह दीवाना नहीं आवारा सा टहल आया था.
रात की ख़ामोशी में चुभन सूच्याग्रों पर स्थित लौह का
भट्ठियों में बदन तपाकर मुझे चुभाने फिसल आया था.
सपनों में अस्थिर हो रहा था मन चेतन और अचेतन
नहीं आते आजकल राजकुमारों के सपने,कल आया था.
शीत हवाओं के भाग्य में समुद्र के खारेपन का चिह्न था.
मेरे में इन्हीं हवाओं के टुकड़ों का दखल संभल आया था.
मैं गडमड हो गयी सी लगती हूँ हे! जगतजननी माते!
आदिशक्ति स्त्री को बनाने आज नहीं,कोई कल आया था?
स्त्रियों की भंगिमाओं में पराजय और परास्त हावी था.
घर और घर से बाहर उपेक्षाओं का दंश हर पल आया था.
सृष्टि के प्रारंभ की कथा सुनाये कोई शिव,विष्णु या ब्रह्म.
स्त्री प्रारंभ का हिस्सा थी या कोख?अंत का प्रारंभ बन आया था.
मैं गर्भ से गर्व के साथ निकली गौरव को नये आयाम तक उठाने.
यहाँ तो बंदिशों के अंबार थे जुगत लगाये लोगों से ठन आया था.
गंगा के जल में रात्रि के इस मध्य प्रहर में मैं आत्म-मुग्धा नहीं.
मेरे जीवन का प्रश्न मैं खुद को पूछने और समझाने आई हूँ,माँ.
मेरा अस्तित्त्व इन बालू कणों की तरह बिखरकर सिमटा क्यों है?
इस तलाश के अंत के अर्थशास्त्र का इतिहास बताने आई हूँ मैं माँ.
उस अभियान्त्रिक कॅालेज के चहारदीवारों से उछलकर आती है रौशनी.
और इसके उत्तरीय छोर पर गंगा में टिमटिमाने आई हूँ उतर मैं माँ.
आहा! कितने सुहाने थे स्वप्न,मेरी तरह बड़ी होती माँ तेरे आंचल में.
पक्षियों के स्वरों सा मधुर तितलियों से रँग,मेरी आँखों में उतरता हुआ.
न माँऐं होती हैं न पिता सर्वदा सहेजने तुझे,कठोर होता आया है वक्त सदा.
पाठ में मन लगा,काम में दिल,एक जुदा जिन्दगी तेरे लिए हो रहा है युवा.
तुमने जितना कहा मैंने उतना सुना उतना भी जिया उस तरह से जिया.
तेरे आँखों की रौशनी में फ़िक्र थी मेरे लिए मुझे सुघड़ बनाने की जिद सा.
तुम्हारे गुस्से में भय था,मेरे आहत भविष्य का,भय मेरे आगत भविष्य का.
तुम्हें बनाना था बेटी को कोमल इस माँ धरा सा और परुष पुरुष सा.
तुमने मुझे विश्वास दिया है धैर्य,सहनशीलता और संभावनाओं पर भरोसा.
जीवन का संघर्ष जब चलेगा तुमने कहा कि सब हार जाएँ पर,”मैं नहीं”.
अँधेरा जब दिशाओं को खतम कर दे हवाएं मेरे वजूद को झकझोरने लगें.
मैं रहूंगी अडिग तुझसे सीखा है माँ तेरी सीखों को बौना करूंगी मैं नहीं.
रात के इस मध्य प्रहर में गंगा का पावन शीतल जल मुझे चिढ़ाता है.
मेरे शैशव से मेरे युवा होने के सारे पल प्रश्न बन मेरा हृदय दुखाता है.
बेटियों को अनन्त काल से शायद ब्याह के सुंदर सपने बांटती हैं माँऐं.
करती हैं तैयार हर कोने से उसे,अब यह तथ्य मेरी माँ मुझे रुलाता है.
देवताओं को श्रद्धा सहित पूजा है मैंने और समर्पित हो माँगा है मैंने.
वरदान नहीं साम्राज्ञी का माँगा या दैत्यों सी अमरता,माँगा है सिर्फ वर.
इस तरह सज्ज होके युवा हो गयी,अर्थ ने शिक्षा के मेरे राह रोक लिए
इसलिए सुलभ सस्ते संस्थानों में पढ़ी और स्नातक तक तो लिया कर.
माँ तुम्हें तो ज्ञात है मेरी छठी इन्द्रिय और सूझबुझ के सारे किस्से.
कहीं से मैं न तो हूँ न लगती हूँ असामान्य लड़की कहो तो माँ तुम.
गंगा कितनी भाव-विभोर होकर बहती है यहाँ और है स्वच्छ तथा निर्मल.
मेरा मन अशान्त, विह्वल और रुआंसा क्यों है क्या जानती हो माँ तुम.
मेरे युवा होने पर कोई समारोह रचता समाज और स्वयंवर का देता हक.
तुम लगाये रखती शर्त कि जिसे वरमाला डलेगा मिलेंगे लाखों के उपहार.
इस गंगा में मेरा देह तपता नहीं, कोई पर्व कोई त्यौहार जाता रचाया.
शहनाइयों के गूंजते स्वर और मचल-मचल जाती गंगा की सारी लहरें.
मंगल गीत गाती औरतों की युवा गतिविधियाँ अल्हड़ता जाती मचा सा.
मेरे युवापन से मेरे पिता के वात्सल्य में जन्मी तकलीफें मेरे ब्याह की थी.
तकलीफें वात्सल्य से बड़ी होने लगीं और इसकी आंच तेरे आंचल तक आई.
तेरा प्यार निरीह हो गया था माँ, तेरे रुआंसे हाथों का स्पर्श याद है मुझे.
माँ अहसास था अपने व्यवस्थित संसार में कितनी थी खलबली मच आई.
ब्याह जीवन का आवश्यक प्रसंग है,कम से कम इन्सान के जीवन में तो.
इन्सान खुद के जीवन को पीढ़ियों में जीने की ललक रखता आया है इसलिए.
युद्ध और विसंगतियों से बचने इन्सान ने बनाये समूह और उसके विधान.
तथा यह लालसा इन्सान के जीवन में मधुरता और जीवंतता लाये इसलिए.
पर,हमारे छोटे संसार में मेरे ब्याह का प्रसंग कठिन व कठोर बन गया माँ.
हमारे पास चुनाव का कोई विकल्प नहीं होता माँ,बस पट जाने की प्रार्थना.
इस प्रार्थना को हारकर लौटे पिता के सूखे,विवर्ण चेहरे पर हँसी को रोता देखा.
माँ,मुझे मेरे जन्म पर पहली बार झुंझलाहट हुई और हुई क्रोध पीड़ा व यातना.
मैं पहली बार अपने आप में सिमटकर बिना आंसुओं के रोई,ख़ुद पर तरसी.
खुद से आग्रह किया कि ऐ उमा! तुम कसम लो कि तुम विवाह नहीं करोगी.
मेरे विद्रोह के पास साहस नहीं था मेरे तथ्य अतार्किक लगे थे होने मुझे ही.
यूँ पराजित होना न पुस्तकों में है न ग्रन्थों में,उमा! यह दृढ़ता कहाँ से लोगी.
क्या है मतलब? जीवन का इस पृथ्वी पर पनपना,बड़ा होना,समाप्त हो जाना.
उम्र के हर पड़ाव पर शरीर के विकास की अंतरात्मा के विभिन्न मायने होना.
कभी लालसा से सराबोर कहीं लिप्सा पर अनियन्त्र कहीं अहम् का वृहत् होना.
जीवन का ‘विवेक’ छोड़ कर हट जाना,लुभावने शब्दों पर जीवन का मुग्ध होना.
गंगा में लहरें उठ रही हैं मेरे देह से टकराकर नष्ट होते हुए मुझे उकसा रही हैं.
और गहरे में चल,बड़ा सकूं है वहां कहती हुई, सारा उथल-पुथल थम जायेगा.
मैं गंगा हूँ कितने! पाप धुले है मुझमें पर,पवित्र हूँ मैं, आ तू भी पवित्र हो जा.
जिन तत्वों से जीवन बना है वह सारे उहापोहों को उसमें समर्पित कर जायगा.
जीवन जो रचा गया उसमें जो प्राण है उसके आदिम इच्छाओं में भूख प्रथम है.
सभ्यता ने और संस्कृति ने इस भूख को विकृत कर दिया है स्वाद को निर्ल्लज.
सितारों के प्रतिबिम्ब गंगा के जल पर कम्पित हो रचते हैं मन में सौन्दर्य बोध.
किन्तु,मन मेरा अस्थिर,असंतुलित,विह्वल है इतना ऐ!माँ,आत्मघात को हूँ सज्ज.
आत्मघात का प्रबंधन पीड़ा दायक है,प्रबंधन से ज्यादा इसे अंजाम तक ले जाना.
मेरा आक्रोश किसलिए है मेरा ब्याहा न जाना या मेरे पिता का दहेज न दे पाना.
आक्रोश उबलता तो है किन्तु,मैं इस आक्रोश में इसका सौन्दर्य ढ़ूढ़ूंगी मेरी माँ .
गंगा के इस जल राशि में आक्रोश का सौन्दर्य,बड़ा है जल में खड़े हो निहारना.
गाँधी के आक्रोश के सौन्दर्य ने एक महान साम्राज्य को घुटनों पर दिया है ला.
प्रभु, मेरे आक्रोश का सौन्दर्य बेटियों को दिला पाये गरिमा बेटी को बेटी का.
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