हिमालय
कौन हूँ मैं कौन हूँ ?
पाषाणी तन का मैं
प्रिय जन जन का मैं
धरती से गौरवान्वित अम्बर से लज्जित हूँ
अन गिनत रत्नों के
ढेर से सुसज्जित हूँ
इष्ठुर या निष्ठुर हूँ
कायर हूँ
अकायर हूँ
वर्षों से
सदियों से
मैं सहस्त्राब्दियों से
नित्य सहा करता हूँ
एड़ी से चोटी तक
मानव और मौसम के
कोप प्रकोप और-
ठंडक को
गर्मी को
बरखा को
बिजली को
अचालित- स्वचालित
ऐटमी प्रहार को
टूटता-बिखरता बस
देखता मैं रहता हूँ
अपने ही ढहते
भहराते अस्तित्व को
मूढ़-अमूढ़ मैं
सचल या अचल हूँ
शटल या अटल हूँ
विकसित हूँ ?
विनाशित हूँ ?
धरती की छाती पर
मौन सी एक मूरत मैं
कब की स्थापित हूँ
भीतर है कोलाहल
बाहर से मौन हूँ
कौन हूँ मैं कौन हूँ?????
*****
सरफ़राज़ अहमद “आसी”