हिन्दी मन की पावन गंगा
हिंदी मन की पावन गंगा.
जन भाषा होती स्वदेश की, सबके मन को रखती चंगा.
हिंदी माथे की बिंदी है, हिंदी मन की पावन गंगा.
जैसे मातृभूमि होती है, स्वर्ग से अधिक भावन जग में.
वैसे मातृभाष्य होता है,दर्प से भरा सावन जग में.
मन में भाव जगाने वाली, हिंदी लोक लुभावन गंगा.
हिंदी माथे की बिंदी है, हिंदी मन की पावन गंगा.
जननी संस्कृत भाषा भाषी, समृद्ध वर्तनी सहित व्याकरण.
वैज्ञानिक भाषा इस जग में, वैज्ञानिक है मूल आचरण.
शास्त्रों की भाषा है हिंदी,दर्शन की मनभावन गंगा.
हिंदी माथे की बिंदी है, हिंदी मन की पावन गंगा.
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम