‘हिन्दी दिवस’
‘हिन्दी दिवस’
देखो आया है हिन्दी दिवस,
ओढ़ स्वर-व्यंजन का दुशाला।
कहीं अ आ इ ई के मोती मानिक,
तो कहीं क ख ग की झाला।
अलंकार की बजा बांसुरी ,
नव रस की छलकाता हाला।
नाना छंदों के पहने हैं कुंडल,
और विलोम पर्याय की माला।
देवनागरी का है पट पहने,
है लगता बड़ा ही निराला।
मान अतिथि हर भाषा को,
बड़े प्यार से इसने पाला।
देखो आया है हिन्दी दिवस,
ओढ़ स्वर-व्यंजन का दुशाला।