हिन्दी ग़ज़ल ” जुस्तजू”
हिन्दी ग़ज़ल ” जुस्तजू”
कोई मन्दिर, कोई मस्जिद में, हर पहर आया,
बन्दगी का मगर,फिर भी न कुछ,असर आया l
हूँ मैं, बेज़ारे-तगाफुल, भले ही, मुद्दत से,
उसका इल्ज़ाम हरेक, पर था, मिरे सर आया l
दीप, आंधी में, जलाया जो, प्रीत का हमने,
क्यूँ उसी दम था, ज़लज़ले का भी क़हर आया l
मैं भी हँसता था, खिलखिला के उसकी चर्चा पे,
दर से उसके, था मगर, क्यूँ मैं, दीदे-तर आया l
नाम से उसके, है हर शख़्स, चिढ़ाता ऐसे,
लेके शीरीं की ज्यूँ, फ़रहाद को ख़बर आया।
इश्क़ लाज़िम था, तभी ज़ेरे-जुस्तजू फिर से,
नमूदे-ख्व़ाब, इक फ़क़ीर, दर-ब-दर आया l
क़दम जो, लड़खड़ा रहे थे, याद में उसकी,
सब हैं कहते,कि मुआ फिर से है,पी कर आया l
मरहबा उसका, जो नज़रों से पिला दी “आशा”,
मिटी ख़ुदी, तो ख़ुदा, ख़ुद में ही नज़र आया l
बेज़ारे-तगाफुल # (प्रेयसी के) (अतिशय) उपेक्षा पूर्ण रवैये से त्रस्त, aggrieved due to (extremely) neglectful attitude (of the beloved)
ज़लज़ला # भूकंप, earthquake
दीदे-तर # अश्रुपूरित नयन, tear laden eyes
लाज़िम # अनिवार्य, mandatory
ज़ेरे-जुस्तजू # तलाश मेँ, in pursuit (of)
नमूदे-ख्व़ाब # स्वप्न मेँ प्रकट होना, to appear in dream
ख़ुदी # अहँकार, ego
##———–##————##———–##——