हिन्दी को समर्पित गीतिका
कितनी प्यारी सरस है हमारी हिन्दी
सारी भाषाओं से है ये न्यारी हिन्दी
कितनी०—-
कवि की ये कल्पनाओं का संसार है
सबकी ये भावनाओं का विस्तार है
ऋषि मुनी ज्ञानियों ने सँवारी हिन्दी
कितनी०—–
बाग के पुष्प जैसी सुवासित है ये
सारी भाषाओं में भी समाहित है ये
अब विदेशों में भी है दुलारी हिन्दी
कितनी०—
इससे हर धर्म की है जुड़ी आस्था
हिन्दी ने ही लिखी हिन्द की है कथा
बन के प्रीतम पे छाई खुमारी हिन्दी
कितनी प्यारी०—-
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)