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सदियों का दैन्य-तमिस्र तूम, धुन तुमने कात प्रकाश-सूत, हे नग्न! नग्न-पशुता ढँक दी बुन नव संस्कृत मनुजत्व पूत। जग पीड़ित छूतों से प्रभूत, छू अमित स्पर्श से, हे अछूत! तुमने पावन कर, मुक्त किए मृत संस्कृतियों के विकृत भूत!
सदियों का दैन्य-तमिस्र तूम, धुन तुमने कात प्रकाश-सूत, हे नग्न! नग्न-पशुता ढँक दी बुन नव संस्कृत मनुजत्व पूत। जग पीड़ित छूतों से प्रभूत, छू अमित स्पर्श से, हे अछूत! तुमने पावन कर, मुक्त किए मृत संस्कृतियों के विकृत भूत!