हिन्दी एक अनिवार्य विषय
हमारे देश के गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों द्वारा माननीय अमित शाह जी के इस बयान का कि हिंदी को अनिवार्य विषय किया जाना चाहिए का विरोध अत्यंत दुखद है। विरोध के पक्ष में यह दलील दिया जाना कि इंग्लिश एक वैश्विक भाषा है अतः चलन में इस भाषा का ही उपयोग होना चाहिए तथा भाषा किसी पर थोपा नहीं जाना चाहिए। यह दलील हमारी राष्ट्रभाषा की मानो हत्या करता है।
सर्वप्रथम विरोध करने वाले राज्यों तथा क्षेत्र के लोगों को यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि वे सब भी उस देश के वासी हैं जिसकी भाषा संस्कृत रही है, देवनागरी रही है, हिंदी रही है जो न केवल हमारी मातृभाषा रही है बल्कि राष्ट्रभाषा भी है। इस भाषा में अनेकों वेद, ग्रंथ और पुराण की रचना हुई जो न मात्र सनातन धर्म एवं संस्कृति का आधार है बल्कि सदियों से हम इसका अनुसरण भी करते आए हैं।
अंग्रेजी भाषा जिसका वे लोग समर्थन कर रहे हैं, यह हमारी भाषा नहीं है वरन अंग्रेजों ने अपनी भाषा का जो बीज हमारे देश में बोया था वही आज पल्लवित और पुष्पित हो गई है। अंग्रेज तो हमारे देश को छोड़ कर चले गए किंतु उनकी भाषा रह गई और जिसे बोल कर आज का प्रत्येक नागरिक अपनी शान समझता है। बच्चा ज्यों ही बोलना प्रारंभ करता है, उसके माता पिता उसे ए, बी, सी, डी बोलना सिखाते हैं। धन्य हैं ऐसे लोग और ऐसे लोगों के ही कारण हिंदी मृतप्राय है। अब तो हिंदी भाषी क्षेत्रों में भी इस चलन का जोर शोर से अनुपालन हो रहा है।
हमारी मातृभाषा अपने आप में पूर्णतया संपूर्ण है। इसकी उत्पत्ति वैदिक के साथ ही वैज्ञानिक भी है। यही कारण है कि यह भाषा न केवल संप्रेषण का माध्यम है वरन भावों की पूर्णतया अभिव्यक्ति है। एक आंग्ल भाषी बोलने के साथ कंधा उचकाता है, हाथों से इशारे करता है चूंकि इस भाषा में भावों की अभिव्यक्ति नहीं है।
जहां तक अंग्रेजी भाषा को वैश्विक भाषा कहा जाता है, ऐसी सोच रखने वालों को मैं बताना चाहता हूं कि पूरे विश्व में अनेकों ऐसे देश हैं जिनकी भाषा अंग्रेजी नहीं है और विश्व के अग्रणी देशों में है। रूस, जापान, चीन, ईरान, इराक, अफगानिस्तान, सऊदी अरब, स्पेन, ओमान जैसे अनेकों देश इस तथ्य का प्रमाण है।
अंग्रेजी भाषा के समर्थकों की संख्या अत्यधिक होने के कारण ही हमें हिंदी दिवस मनाना पड़ता है यह याद दिलाने के लिए कि हमारी वास्तविक भाषा हिंदी है, हमारी मातृभाषा हिंदी है, हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी है।
मैं अंग्रेजी भाषा का विरोध नहीं करता परंतु हिंदी भाषा का पुरजोर समर्थन करता हूं जो हमें विरासत में मिली है, हमारे पूर्वजों से मिली है। आइए हम सब मिलकर हिंदी अपनाएं और क्यों न इसे वैश्विक भाषा बनाएं क्योंकि विश्व का कोई भी कोना नहीं है जहां भारतवासी नहीं है। जय भारत, जय हिंदी
भागीरथ प्रसाद