हिदायत
बहारें जब चली जायें ,निगाहें नम नहीं करना
गुलों की चाह में खोकर , मुहब्बत कम नहीं करना .
तड़प के टूटते दिल को , बहारों ने किया ज़ख्मी ,
सहेजे शूल जब गुल को , पड़ा मरहम नहीं करना.
न पलकें मूँदने दे , रात भर यादें तुम्हारी पर ,
मुहब्बत में जुदाई का , गिला हरदम नहीं करना
बहारें लौट आईं हैं, मुहब्बत कसमसाई है ,
बुझा के दीप चाहत के , सितम हमदम नहीं करना .
रहेगा इन लबों पे अब , तुम्हारा नाम ही हरदम ,
मिलन की चाह को दिल में , ‘अना’ मद्धम नहीं करना .
अनीता मेहता ‘अना’