हिंसा
कहीं पर आग की लपटें, कहीं पर खून का कतरा ।
वफ़ा कब तक निभाओगे, बताकर देश पर खतरा।।
चुनावी लाभ लेने की, रहेगी आपकी फ़ितरत ।
गरीबों को लड़ाने की, रहेगी आपकी हसरत ।।
भला किंचित नहीं होगा, बढ़ेगी आपसी दूरी ।
घटेगी राष्ट्र की ताकत, बढ़ेगी और मजबूरी ।।
तुम्हारी स्वार्थ की नीयत, तुम्हारे रंग हैं खूनी ।
कभी घायल हुए रक्षक, कभी हिंसा बड़ी दूनी ।।
बहुत मजबूर है जनता, इसे ना और तड़पाओ ।
यही है वोट की ताकत , इसे न और बिखराओ ।।
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