हिंसक शत्रु
होते हमारे हिंसक शत्रु
आस – पास ही हमारे
रहते सदैव घात लगायें
हमें वेदना पहुँचाने में
अनभिज्ञ होते हिंसक शत्रु
वैमनस्यतों से भी घातक
होते हमारे स्वजन ही है
वही हमारे हिंसक शत्रु
स्वतः को श्रेष्ठ बतलाना
मत्सर की भावना रखता
अपना जीवन बेसुध करता
साहचार्य ही हमारी भी
तरनी डुबा बैठता है
ऐसे हिंसक शत्रु से
सचेत, अप्रमत्त रहें
हमेशा दूरियाँ गढ़ते रहें
अपने हिंसक शत्रु से।
✍️✍️✍️उत्सव कुमार आर्या