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3 Sep 2019 · 4 min read

हिंदू-मुसलिम बहस के पीछे का सच

पिछले वर्ष घटित ये दो घटनाएं शायद आपको याद होंगी जब देश की राजधानी में 3 मई 2018 को तुगलक काल के एक मकबरे को कुछ लोगों ने रंग-पोत कर रातोंरात मंदिर में बदल दिया और राजधानी से सटे देश के आधुनिकतम कहे जानेवाले औद्योगिक शहर गुरुग्राम में 4 मई 2018 शुक्रवार को कुछ हिंदुत्ववादियों ने शहर के बीचोंबीच कुछ प्रमुख इलाकों में सड़कों पर चल रही जुमे की नमाज नहीं होने दी. इस तरह की वारदातें नित नए रूपों-प्रतिरूपों में निरंतर और बेधड़क जारी हैं. न कहीं कानून है, न कानून का डर. और डर हो भी क्यों? बड़ी पुरानी कहावत है-जब सैंया भए कोतवाल. यकीनन देश एक बेहद नाजुक दौर से गुजर रहा है.
मैं नहीं मानता कि यह सब कुछ मात्र संयोग से कहीं-कहीं हो जा रहा है. सच कहें तो ऐसे हालात जानबूझ कर बनाए जा रहे हैं. आपको याद होगा कि केंद्र में मोदी सरकार बनते ही अचानक गिरजाघरों पर हमलों की घटनाएं एक-एक कर सामने आई थीं. दुनिया भर में जब इसका शोर उठा तो यह हमले एक दिन अचानक बंद हो गए. ठीक वैसे ही, जैसे किसी ने बिजली का स्विच ‘आॅफ’ कर दिया हो. यह स्वाभाविक प्रश्न है कि यह ‘स्विच’ किसने ‘आॅफ’ किया?
गिरजाघर अब निशाने पर नहीं हैं बल्कि अब बड़े षड्यांत्रिक तरीके से ‘हम’ फारमूले पर तेजी से काम हो रहा है. ‘हम’ यानी ह से हिंदू और म से मुसलमान. लेकिन यह ह+म (ह धन म) का फारमूला नहीं है. यह ह-म (ह ऋण म) का फारमूला है. अंगरेजों के ‘हम’ फारमूले को नागपुरी खलबट्टे में घोंट-निचोड़ कर निकाला गया उसका नया संस्करण है यह. अंगरेजों का तो स्वार्थ सीमित था, इसलिए उनके ‘हम’ का मतलब था ह=म यानी हिंदुओं-मुसलमानों को आपस में लड़ाते रहो और राज करते रहो. लेकिन यहां लक्ष्य बहुत बड़ा है, लक्ष्य ‘परम वैभव’ का है. ‘परम वैभव’ यानी हिंदू राष्ट्र. तो इस ‘परम वैभव’ में भला ‘म्लेच्छों’ की क्या जगह? यानी ह तो रहे किंतु म न रहे और रहे तो उसी में समाहित हो जाए.
अब यह (ह ऋण म) आखिर होगा कैसे? इसे कामयाबी प्रदान करने का पूरा प्रयत्न किया जा रहा है. किसी न किसी बहाने हिंदू-मुसलमान के सवाल को लगातार उछाले रखो. जो हिंदुत्व-समर्थक हैं, वह तो मुसलमानों को ‘शत्रु’ मानते ही हैं. लेकिन हिंदुओं की जो विशाल आबादी हिंदुत्व समर्थक नहीं है. उसके लिए रणनीति यह है कि उनके मन में धीरे-धीरे यह बात बैठा दो कि मुसलमान बहुत खराब होते हैं. इक्का-दुक्का अपवाद हो सकते हैं तो हों, लेकिन आम हिंदुओं के दिमाग की अगर यह ‘कंडीशनिंग’ कर दी जाए कि आमतौर पर मुसलमानों में कुछ भी अच्छा नहीं, न आज और न कभी इतिहास में तो वह मुसलमानों से दूर होते जाएंगे और (ह ऋण म) का लक्ष्य पाना आसान हो जाएगा. इस समय टीवी चैनल के स्टुडियो इस षड्यंत्रकारी लक्ष्य को कामयाब बनाने में जुटे हुए हैं. कुछ मुद्दे उछाल कर, कुछ एजेंडे लहरा कर, टीवी न्यूज चैनलों के स्टूडियो में गरमागरम बहसें कराकर.
आज देश के सारे अहम मसलों को छोड़ कर टीवी चैनलों की सबसे ज्यादा चिंता मुसलिम मामलों या हिंदू-मुसलिम मामलों पर डिबेट कराने की हो गई है. इन बहसों को ऐसा स्वरूप दिया जाता है कि इसमें एक पक्ष खलनायक प्रतीत हो. आपके दिमाग में ये बात आए कि ये मुस्लिम प्रतिनिधि बेतुकी और बेहूदा बातें क्यों करते हैं तो हो गई आपकी ‘कंडीशनिंग’ और हो गया उनका मकसद पूरा. लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि टीवी चैनलों की बहसों में कोई ऐसा मुसलमान क्यों नहीं दिखता या बमुश्किल दिखता है जो समझदारी की बात करता हो. तो मेरे भाई इसे कहते हैं साधारणीकरण यानी यह हिंदुओं में बने कि एक ऐसा है तो सभी वैसे ही होंगे. एक अगर आतंकवादी है तो सब अगर आतंकवादी न भी हुए तो आतंकवाद के समर्थक तो जरूर होंगे. यही है ‘कंडीशनिंग’ यानी लोगों के मन में एक नकली धारणा को उपजा देना, जो बाद में उनका विश्वास बन जाए. यह सामाजिक मनोविज्ञान की बड़ी जटिल और बहुत धीमी चलनेवाली प्रक्रिया है, लेकिन इससे ऐसी पुख्ता धारणाएं बनती हैं, जो सदियों तक बनी रह सकती हैं. जैसे गोरा रंग अच्छा होता है, अमुक जाति सर्वोत्तम है और अमुक निकृष्ट.
इस तरह टीवी डिबेट के छोटे-छोटे चौखटों में पूरी कोशिश के साथ गढ़ी और जड़ी जा रही है मुसलमानों की वह छवि, जो यह साबित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ती कि मुसलिम समाज हमारे देश के लिए खतरनाक हैं, इन्हें कुचलना है या फिर दबाए रखना है. मेरे कई उच्च शिक्षित साथी हैं जो भाजपा समर्थक हैं, जब बहस में मेरे से हारने लगते हैं, तब उनका दबी जुबान यह कहना रहता है -‘वह तो ठीक है श्यामजी, मोदी भी वैसई है लेकिन मोदी के रहते ये साले मुसल्ले शांत रहेंगे, इनकी चर्बी कुछ कम होगी.’ इस तरह नफरत की आग स्टूडियो से निकल कर समाज में भी फैलती है. यह स्पष्ट है कि टीवी चैनलों पर जो बहस की नौटंकियां होती हैं, वे सिर्फ भावनाएं भड़कानेवाली होती हैं और जाने-अनजाने लोगों के दिमाग की खतरनाक कंडीशनिंग कर रही हैं, यह ह-म अर्थात (ह ऋण म) के फारमूले को कामयाब बनाने की बदनीयत रखनेवालों के लिए सुभीते की बात है.
-07 जुलाई 2019 रविवार

Language: Hindi
Tag: लेख
5 Likes · 2 Comments · 274 Views
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