वाद है तो कहीं विवाद, पर रक्षक संविधान है.
हिंदुत्व का खेला पता है,
सिर्फ एक-दो प्रदेश गंवाये है,
सब मस्जिदें तबाह हो गई,
संविधान इजाजत नहीं देता,
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आज का ये दिन,
एक अजीब सी उलझन के साथ आरंभ हुआ,
रात अभी बाकि है,
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सोचने पर मजबूत कर गया,
हम कर क्या रहे है ?
क्या है ये सब ??
क्यों कर रहे ऐसा या वैसा ???
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होमवर्क कोई करना नहीं चाहता,
हर विद्यार्थी शिक्षक को दुश्मन समझता है,
हर सास बुरी है ..पुत्रवधु के खातिर,
ये हमेशा भला चाहते हैं.. पर रहेंगे बुरे,
क्योंकि कोई होमवर्क नहीं करना चाहता,
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कोई सच में दोस्ती नहीं निभाना चाहता,
लत एवं आदतों का एक जैसा होना काफी है,
कोई कहकर उस(लत)की ओर इंगित करता है,
बन गया दुश्मन. हो गए रास्ते अलग,
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आजकल सिर्फ “विचारों में समानता” का अर्थ नहीं है..दोस्ती का,
इसके साथ साथ दो एक जैसे रास्ते पर खड़े हो का मतलब ही पूर्णतया दोस्त है,
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आपका व्यक्तित्व कैसा है ?
जाये भाड़ में,
पर आप व्यवस्थित है उन्हें गंवारा नहीं,
आप विचलित हो..उस पर प्रयास है,,
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तरह तरह की खुशियां,
तरह तरह के आडम्बर,
विशिष्ट होने का प्रचार,
बस स्वयं को धार्मिक समझ
दूसरों पर रोब झाड़ना आम बात है,
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कोई वीर+जाति लिखता है,
तो कोई ग्रेट+जाति..,
वैसे बस-दुकानें फूँक कर आरक्षित कौम है,
कोई मोदी विरोधी है,
कोई कट्टर समर्थक,
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लोकतंत्र की ए बी सी नहीं आती,
अधिकार और कर्तव्य से नहीं हैं वाकिफ,
कहते फिरते है …कमी संविधान में है,
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आरक्षण लिये बैठे है,
कमी बाबा साहब में है,
अब खुद जनता की डिमांड है,
घटी नहीं बढ़ी है,
बदनाम आरक्षण है,
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तरीकों में इज़ाफा करते जाते हैं,
परहेज गुड़ के है शौक गुलगुले का रहते है,
डोनेशन या मैनेजमेंट की सीटें क्या है ये सब,
Ex-service man(ESM) के बेटे ने कौन सा युद्ध लड़ा है उसका भी कोटा,
धार्मिक संस्थानों पर तो है ही ब्राह्मणों का कब्जा ।।
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हर आदमी किसी न किसी के लिए काम कर रहा है चाहे उसे मालूम हो या न हो,
हर कोई वादी है ..ईज़म भरा पड़ा है,
बेकार हो गई.. अष्टावक्र की गीता,
जूझ रहा है संविधान,
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हिंदुत्व का खेला पता है,
सिर्फ एक-दो राज्य गंवाये हैं,
सब मस्जिदें तबाह हो गई,
संविधान इजाजत नहीं देता,
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लेखक:-डॉ0महेंद्र.