हिंदुस्तान सभ्यताओं का कारंवा
तुम चाहते हो
वतन को चमन बनाना
हर गली हर मोहल्ले में
फूल खिलाना
रखते हैं तबज्ज़ो
तुम्हारे नेक ख़्याल का
बनादें माली तुम्हें
इस पुरे गुल बाहर का ।
तुम्हारी शर्त को
नामंजूर करते है
ये हिंदुस्तान है
इसके हर एक फूल की
कद्र करते है ।
हिंदुस्तान की फैली महक
इस ज़हान में
खिंची आयीं सभ्यताएं यहाँ
आसरे की चाह में
चाहते हो तुम
उजाड़ दें इस बहुरंग चमन को
और सारंग से सजा दें
अहले वतन को ।
ये हो नही सकता कि खिले
एक ही गुल इस चमन में
और एक ही माली बने
इस बहुरंग वतन में
ये मुल्क नही जिसे सम्भाले कोई सुल्तान
कारंवा है सभ्यताओं का
जो ना भरेगा किसी एक अंक में ।