हिंदुत्व अभी तक सोया है, 2
फिर से इस पर आघात हुए,
फिर बेबस होकर रोया है।
आघात बराबर जारी हैं,
हिंदुत्व अभी तक सोया है।
ये जात पांत में बॅंटा हुआ,
खुद का हित जान न पाया है।
ये आज यहॉं कल कहीं और,
केवल पिटता ही आया है।
घर जला पड़ोसी का फिर भी,
ये अपने में ही खोया है।
आघात बराबर जारी है,
हिंदुत्व अभी तक सोया है।
हम थे अखंड, फिर खंड खंड,
अब सीमित भारत अचल रहे।
इसको भी खंडित करने को,
कुछ वहशी फिर से मचल रहे।
निज पौरुष को क्यों भूल रहा,
आशंका में क्यों खोया है।
आघात बराबर जारी है,
हिंदुत्व अभी तक सोया है।
है धर्म अहिंसा परम किंतु,
जब संकट स्वयं धर्म पर हो।
तब कैसे कोई चुप बैठे,
आसन्न मृत्यु जब सर पर हो।
खंडित भारत माॅं का तूने,
तो ऑंचल सदा भिगोया है।
आघात बराबर जारी है,
हिंदुत्व अभी तक सोया है।
गांडीव छोड़कर जब अर्जुन,
हो युद्ध धर्म से विमुख अड़ा,
केशव ने उसको समझाया,
तू धर्म पक्ष में यहॉं खड़ा।
माना सारे संबंधी हैं,
लेकिन ये सभी अधर्मी है।
इनके मन में विद्वेष भरा,
बस अहंकार की गर्मी है।
कुरुकुल विनाश का बीज स्वयं,
कुरुकुल दीपक ने बोया है।
ज्यों वस्त्र पुराने त्याग मनुज,
नित नूतन वस्त्र पहनता है।
इस जीर्ण शीर्ण काया को तज,
नव देह आत्मा पाता है।
जो आया है वह जायेगा,
जीवन का शाश्वत सत्य यही।
हैं मृत्यु अवश्यंभावी ही,
तू केवल इसको मान सही,
संबंध सभी ये मिथ्या हैं,
किस मोह पाश में खोया है।
ये सब अधर्म के साथ खड़े,
पुरुषार्थ हीन से डरे हुए।
मत सोच इन्हें तू मारेगा,
ये हैं पहले से मरे हुए।
ले देख विराट रूप मेरा,
सब जीव समाये हैं मुझमें,
जग की माया से परे देख,
हैं मृत्यु और जीवन मुझमें।
दुविधा को तज, रण तत्पर हो,
गांडीव उठा क्यों सोया है।
आघात बराबर जारी हैं,
हिंदुत्व अभी तक सोया है।
तुम राम कृष्ण के वंशज हो,
तुम धर्म ध्वजा के रक्षक हो,
क्यों भूल रहे कुरुक्षेत्र युद्ध,
जब संबंधी ही थे विरुद्ध,
हो गये विफल जब सब प्रयास,
किंचित न रही शांति की आस,
तब था विकल्प ही मात्र युद्ध,
हिंसा थी हिंसा के विरुद्ध,
इसलिए जाग, सब भ्रांति त्याग,
चेतन हो जा क्यों सोया है।
आघात बराबर जारी हैं,
हिंदुत्व अभी तक सोया है।
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
#सर्वाधिकार सुरक्षित।
22.08.2024