#हिंदी_ग़ज़ल
#हिंदी_ग़ज़ल
■ पर खोल रहा है वर्तमान।।
【प्रणय प्रभात】
★ मुँह खोल रहा है वर्तमान।
कुछ बोल रहा है वर्तमान।।
★ कितना खोया कितना पाया।
यह तोल रहा है वर्तमान।।
★ सुंदर अतीत की गलियों में।
फिर डोल रहा है वर्तमान।।
★ भावी को रंगने नए रंग।
कुछ घोल रहा है वर्तमान।।
★ अनमोल रहा जिनका अतीत।
अनमोल रहा है वर्तमान।।
★ दड़बों में दशकों बीत गए।
पर खोल रहा है वर्तमान।।
★ भावी का कोई मोल कहाँ?
अनमोल रहा है वर्तमान।।
★ इतिहास सरीखा है अतीत।
भूगोल रहा है वर्तमान।।
★ आड़ा आगत, टेढ़ा अतीत।
बस ग
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)