हिंदी हूं मैं!
हिंदी हूं मै!
संस्कृत के संस्कृति से सिंची हुई,
मै हूं रेखा गंगा से खींची हुई।
सहित गौ – गीता हमारा प्रकृति सा संसार है,
मेरा भी एक प्यारा सा परिवार है।
भारत मां के माथे की बिंदी हूं मैं…….. हां हिंदी हूं मै
मेरा भी गौरवमई इतिहास है,
क्या नहीं था, अब जो सबके पास है।
क्या करूं उनसे मै तुलना,
जिनको है मुझमें ही घुलना।
आंग्ल, उर्दू ,फारसी सबने लड़ा,
मै तो मां हूं मुझको सब सहना पड़ा ।
मैथिली – हरियाणवी, गुजराती – मराठी – सिंधी हूं मै….. हां हिंदी हूं मै।
मैं नहीं बस एक भाषा,
हूं करोड़ों की मै आशा।
वैसे तो मै हर जगह हूं,
हर शहर में, हर नगर में।
पर गांव में है रुधिर नलिका मेरी बहती,
जैसे मां कमजोर बेटे संग रहती।।
नहीं किसी की बंदी हूं मैं,…….. हां हिंदी हूं मै।
मां को देने तुम चले आधार हो,
तुम समझते रिश्ते को व्यापार हो।
मत करो ऊर्जा विसर्जित व्यर्थ में,
अपना तुम जीवन लगाओ अर्थ में।
बेटे हो एक बात मैं समझा रही हूं,
मत करो व्यापार लो मैं आरही हूं।
व्यापार का साधन नहीं,
अवसाद अप वादन नहीं। कितनों से लड़कर भी जिंदी हूं मै…. हां हिंदी हूं मै
🔥सभी हिंदी पुत्रों को समर्पित🔥