हिंदी : सपनों की भाषा
हिंदी हमारे सपनों की भाषा है
यह अपनों की भाषा है
इसके सपने अपने हैं
जिसमें “क” का कर्म भी है
और “ज्ञ” का ज्ञान भी,
यह हृदय से निकलती है और हृदय में समाती है
यह कमज़ोरों की नहीं समर्थों की भाषा है
यह उन्नति की भाषा है
प्रगति की भाषा है
नदियों की कल कल की भाषा है
यह शिखर है पर्वत शृंखलाओं का
तान है किसानों का
मान है जवानों का
यह भाषा है विज्ञान की
सुर, तुलसी और रसखान की
इसके शब्द झीलों में इठलाते हैं
विशाल समुद्र की ज्वार है
और भाटा भी
यह वनों की हरियाली में समायी –
भाषा है
सभ्यता व संस्कृति की.
यह संगीत के स्वरों में गुथी
जन-जन की भाषा है .
यह वाहक है –
मधुर गीत की पंक्तियों की
यह भाषा है प्रकृति की
उसके समृद्ध धरोहर की
यह भाषा है
हमारे राष्ट्रीय गर्व की
पहचान की
यह पल है , साल है और दिवस भी
हर दिवस है हिंदी की.
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– डॉ. सूर्यनारायण पाण्डेय