हिंदी भाषा का दर्द –आर के रस्तोगी
मैं भारत से हिन्दी बोल रही हूँ
अपने ह्रदय की पीड़ा खोल रही हूँ
मेरी आवाज कोई नही यहाँ सुनता है
अंग्रेजी भाषा का जाल यहाँ बुनता है
मेरे देश में ही मेरा बुरा हाल है
विदेशी भाषा पर ठोकते ताल है
कोई नहीं करता मेरा ख्याल है
यही मेरे मन में बड़ा मलाल है
कैसे सुनाऊ मै तुमको कहानी
अपनों द्वारा मैं यहाँ सताई हूँ
मेरे दर्द को जरा तुम समझो
मैं अपने देश में बनी पराई हूँ
मेरे लहू का यहाँ बन गया पानी
कैसे कहूँ मैं अपने दर्द की कहानी
वर्ष में एक बार याद कर लेते है
जैसे कोई मेरा श्राद्ध मना लेते है
कहने को मेरा अपना विभाग है
अंग्रेजी को मिले आदर का भाग है
मैं अलग से बैठा दी जाती हूँ
अछूत बन कर रह जाती हूँ
मेरे देश में मुझको नहीं जानते है
मुझको जरा नहीं यहाँ पहचानते है
हिंदी भाषा के कितने स्वर व्यजन है
ये तक बच्चे यहाँ के नहीं जानते है
अंग्रेजी भाषा को यहाँ जानते है
उसको ही यहाँ सब पहचानते है
अंग्रेजी भाषा में कितने अक्षर है
अच्छी तरह से उनको जानते है
आर के रस्तोगी