-: हिंदी प्रेमी :-
मैं हिंदी प्रेमी हिंदी का,
रसपान कराने आया हूँ ।
मैं हिंदुस्तान की माटी में ,
हिंदी को बड़ाने आया हूँ ।
भारत तेरे भाल की बिन्दी,
न जाने कहाँ खो गई हिन्दी।
तेरे उज्ज्वल धवल कपाल पे मैं ,
हिंदी को जड़ाने आया हूँ।
मैं हिंदी प्रेमी हिंदी का,
रसपान कराने आया हूँ।
बहुत विरोधी तेरे बढ़ गए ,
कौन इन्हें समझाएं मां।
तेरे अतीत गौरव की गाथा ,
कौन इन्हें बतलाए मां।
मैं कविकुल का वंशज हूँ ,
कविता को ही गा सकता हूँ ।
मां मैं काले अंग्रेजों से,
युद्ध नहीं कर सकता हूँ ।
है जिनके अंदर ललक हिंदी की ,
उन्हें जगाने आया हूँ ।
मैं हिंदी प्रेमी हिंदी का ,
रसपान कराने आया हूँ।
– पर्वतसिंह राजपूत ‘अधिराज’
ग्राम सतपोन
मो . 8966828678