हिंदी की महिमा
रग-रग हिंदी, कण-कण हिंदी,
हिंदी है आधारशिला।
हिंदी बिन सूना है जीवन,
हिंदी जीने की कला।
हिंदी से हिंदुकुश है,
हिंदी से हिंदुस्तान बना,
हिंदी हमको बांधे रखती,
हिंदी से अभिमान बढ़ा।
आदि, भक्ति, रीति, आधुनिक, नव्योत्तर है काल सुहाना,
हिंदी के उस प्रेम रस को छायावाद में हमने जाना।
हिंदी में है नशा बड़ा ये हरिवंश ने जाना है,
हिंदी की मार्मिकता को जयशंकर ने पहचाना है ।
मर्यादा हिंदी से मिलती तुलसी जी के दोहों से,
भक्ति भाव की अलख है जगती सूरदास के भजनों से।
राष्ट्र-चेतना हिंदी जगाती सुभद्रा जी की ललकारों से,
हिंदी देश की रक्षा करती अटल जी की फटकारों से।