“हिंदी की दशा”
हिंदी दिवस के सुअवसर पर एक कविता
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“हिंदी की दशा”
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भटकती आत्मा देखो,
हिंदी की, आज;
14 सितंबर को,
फिर प्रकट हुई।
दिवस मनाने की,
आनन- फानन में,
होती तैयारी देखो,
ये समस्या कितनी,
फिर से विकट हुई।
हिंदी-हिंदी बोलते,
निकले सभी बिलों से;
हिंदी की दुर्दशा के,
परिणाम पूछो वकीलों से।
इंग्लिश का कमाल देखो,
उच्च शिक्षा के अध्य्यन में;
हम सिर्फ क,ख, ग़, घ ही,
सीख पाते, हिंदी माध्यम में।
पैसेवालों के बच्चे पढ़ते,
इंग्लिश, कॉन्वेंट में;
गरीबों के बच्चें पढ़ते हिंदी,
पेड़ों के नीचे और टेंट में।
किसी देश के हित की,
होती तीन ही आधार;
भूमि, जन और अपनी,
राष्ट्रभाषा से ही प्यार।
हिंद की अपनी भूमि है,
जनों का भी अंबार है;
मगर यहां सबों को सिर्फ,
अपनी-अपनी भाषा से ही,
खूब प्यार है।
संस्कृत ही रह-रहकर,
सदा याद दिलाती है,
हम ही माता हैं,
हिंदी हमारी बेटी है;
सोचो, बेटी की दुर्दशा से,
माता को क्या कष्ट होती है।
हिंदी की लिपि देवनागरी भी,
संस्कृत से उधार है,
ये संस्कृत का आभार है,
मां का बेटी प्रति प्यार है।
हिंदी कलमरूपी तलवार,
हुआ करती थी कभी,
देश के सच्चे वीरों की;
अब हिंदी सिर्फ हथियार है,
कुछ राजनीतिक लूटेरों की।
सरकारें सिर्फ चिल्लाती है,
हिंदी को बस सहलाती है;
दशकों से हिंदी प्रेमी को,
इस दिन मूर्ख बनाती है।
भटकती आत्मा देखो,
हिंदी की, आज ;
फिर से प्रकट हुई;
देखो,समस्या अब,
कितनी विकट हुई।
आओ मिलकर करे प्रण,
हिंदी का अब नहीं,
होने देंगे चीरहरण;
हिंदी को हम बचाएंगे,
हिंदी विरोधी गद्दारों को,
जरूर हम भगाएंगे।
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“जय हिंदी”. “जय भारत*
स्वरचित सह मौलिक
…. ✍️”पंकज कर्ण”
…… ……कटिहार।।