हिंदी का वैभव
चलो आज फिर कुछ हिंदी के शब्दों को बहलाया जाय
भाल धरा का फिर हिंदी की बिंदी से सजाया जाय
कहें कभी निज भाषा इसको इतना मुखर कर दें
अपने उर के भावों में हिंदी का मधुरम स्वर भर दें
हर दिवस हो हिंदी दिवस इसका इतना अधिकार हो
बस एक दिवस के लिए न फिर आंखों में इंतजार हो
हिंदी सिंधु सदृश सजीली आत्मसात सबको करती
एक नहर बना न दो इसको इस डर में जीती मरती
हर वर्ष दिए हैं हिंदी दिवस पर नारे इसके उत्थान के
लेकिन कभी हुए नहीं आंदोलन इसके सम्मान के
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं
अभिनेष