हिंदी काव्य के छंद
हिंदी काव्य में अनेकों छंद बद्ध रचनाएं मिलती है। उनमें से हिंदी काव्य के छंद विवरण में बारी बारी से पश्चात करूंगा। सर्वप्रथम मात्र आधारभूत जानकारी देने की कोशिश करता हूं।
हिंदी काव्य में कई प्रकार के छंदों का प्रयोग किया जाता है, जो विभिन्न मात्रा, लय, और गणों (ह्रस्व और दीर्घ) पर आधारित होते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख छंदों का विवरण दिया गया है:
1. दोहा:
विन्यास: 13-11 की मात्राओं का क्रम
विशेषता: दो पंक्तियों में चार चरण होते हैं, जिसमें प्रथम और तृतीय चरण में 13 मात्राएँ और द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 11 मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण:
“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥”*
2. सोऱठा:
विन्यास: 11-13 की मात्राओं का क्रम (दोहा का उल्टा)
विशेषता: दोहे से विपरीत, इसमें पहले और तीसरे चरण में 11 मात्राएँ और दूसरे एवं चौथे चरण में 13 मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण:
“सुर सरिता है गंग, सब नर-नारी तारिनी। मन संतन के संग, बहे उधारन हारिनी॥”*
3. चौपाई:
विन्यास: 16 मात्राओं का क्रम
विशेषता: चार पंक्तियाँ, प्रत्येक में 16-16 मात्राएँ होती हैं। यह छंद रामचरितमानस में प्रमुखता से प्रयुक्त हुआ है।
उदाहरण:
“जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥”*
4. आर्या:
विन्यास: 12-18 मात्राओं का क्रम
विशेषता: इस छंद की दो पंक्तियाँ होती हैं। पहली पंक्ति में 12 मात्राएँ और दूसरी में 18 मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण:
“दूरि विधु तुमहिं निकट कुंज पर, रै रही रसमयी रुचि सी। चकोर सम अधिक अनुराग करु, सुधा सुरभि कब लावहुंसी॥”*
5. सवैया:
विन्यास: चार पंक्तियाँ, प्रत्येक में 22-22 मात्राएँ
विशेषता: सवैया छंद लयात्मक और ध्वन्यात्मक सौंदर्य से भरपूर होता है। इसका उपयोग श्रृंगार, वीर रस आदि में होता है।
उदाहरण:
“कहत, नटत, रीझत, खीझत, मिलत, खिलत, लजियात। भरे भवन में होत है, नैनन ही सों बात॥”*
6. रौला:
विन्यास: 24 मात्राएँ (12-12 का क्रम)
विशेषता: इसमें दो पंक्तियाँ होती हैं, जिनमें प्रत्येक में 24 मात्राएँ होती हैं, और यह वीर रस के लिए प्रसिद्ध है।
उदाहरण:
“वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो। किंतु पंथ में रुको नहीं, कभी कहीं झुको नहीं॥”*
7. गीतिका:
विन्यास: विभिन्न मात्रा और चरणों का क्रम
विशेषता: गीतिका में सामान्यतः एक लय और सरलता होती है। इसमें गेयता होती है, और यह विभिन्न रसों में रची जाती है।
8. हरिगीतिका:
विन्यास: प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ
विशेषता: चार पंक्तियाँ होती हैं, जिनमें हर पंक्ति 16 मात्राओं की होती है। यह छंद शृंगार, भक्ति और वीर रस में अधिक प्रयोग होता है।
उदाहरण:
“सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी। बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी॥”*
9. त्रिभंगी:
विन्यास: तीन पंक्तियों में 18, 12, और 18 मात्राएँ
विशेषता: इसका उपयोग विशेष रूप से वीर और श्रृंगार रस में किया जाता है।
10. द्रुतविलंबित:
विन्यास: 14-15 की मात्राओं का क्रम
विशेषता: यह छंद बहुत लयात्मक होता है, जो गति और स्थिरता के भाव को साथ में लेकर चलता है।
11. वियोगिनी:
विन्यास: 14 मात्राओं का क्रम
विशेषता: इसमें विरह और दर्द के भावों की अभिव्यक्ति होती है।
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और भी अनेकों छंद में क्रमशः प्रस्तुत करता रहूंगा।।
@★ दोहा छंद ★
आज थोड़ा विन्यास प्रथम छंद दोहा पर डालते है।
दोहा हिंदी काव्य का एक प्रमुख छंद है, जिसमें 13-11 की मात्रा योजना होती है। दोहा के कई प्रकार होते हैं, जो उनके विषय, भाव और शिल्प के आधार पर विभाजित किए जा सकते हैं। यहाँ दोहों के प्रमुख प्रकार भाव के आधार पर दिए गए हैं:,शिल्प के आधार पर दोहे के 25 प्रकार बाद में लिखूंगा।
1. नीति दोहा:
नीति दोहे में जीवन जीने की नीतियाँ, आदर्श और नैतिक मूल्यों को व्यक्त किया जाता है। इन दोहों में सिखावन और उपदेशात्मकता होती है।
उदाहरण:
“अल्पहारी अल्पचारी, अल्पनिद्र नित्य जाग। अल्पवचन कुटिल नाहि, सोई संत सुजान॥”*
2. श्रृंगार दोहा:
श्रृंगार रस से ओत-प्रोत ये दोहे प्रेम, सौंदर्य, और रति के भावों को व्यक्त करते हैं। यह राधा-कृष्ण की लीलाओं या प्रेमियों के बीच संवाद पर आधारित होते हैं।
उदाहरण:
“जिन आंखों में प्रीति हो, कर न सके किन मौन। पातक सब होय मेट, कामद सुफल वचन॥”*
3. भक्ति दोहा:
भक्ति दोहों में भगवान, गुरु या किसी देवी-देवता के प्रति भक्त का प्रेम और समर्पण होता है। ये दोहे भक्तिमार्ग पर चलते हुए आत्मज्ञान और मोक्ष की बात करते हैं।
उदाहरण:
“करम-धर्म की दृष्टि से, राखि राखे सब कोय। संत मनावें कृष्ण को, हरि ही हर सुख होय॥”*
4. वीर रस दोहा:
वीर रस के दोहे वीरता, साहस, और युद्ध से संबंधित होते हैं। इनमें वीर योद्धाओं के गुण, उनके संघर्ष और शौर्य का वर्णन होता है।
उदाहरण:
“वीर भोग्या वसुंधरा, वीर जिए जंग जीत। ज्वाला उठे जब हृदय में, वीर न होय भयभीत॥”*
5. विरह दोहा:
विरह दोहों में प्रेमी-प्रेमिका के बीच के वियोग और उनके मन के दर्द का चित्रण होता है। इसमें प्रिय के वियोग में तड़प, दुःख और अधूरी चाहतें व्यक्त की जाती हैं।
उदाहरण:
“तुम बिन रहना कठिन है, जैसे जीवन शून्य। मिलन बिना न चैन हो, जैसे तपती धून्य॥”*
6. ज्ञान दोहा:
ज्ञान के दोहों में साधना, आत्मज्ञान, मोक्ष, और जीवन के सत्य की बात की जाती है। संत कवियों ने ज्ञान दोहों के माध्यम से जीवन की गूढ़ बातों को सरलता से समझाया है।
उदाहरण:
“जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ। मैं बपुरा बूढ़न डरा, रहा किनारे बैठ॥”*
7. सामाजिक या सुधारात्मक दोहा:
यह दोहे समाज में व्याप्त बुराइयों, कुरीतियों और दोषों पर प्रहार करते हैं। कवि इस प्रकार के दोहों के माध्यम से समाज सुधार का संदेश देते हैं।
उदाहरण:
“निज भाषा पर अभिमान कर, मन में रख विश्वास। जो मां सम सम्मान दे, वही होय नवलाश॥”*
8. प्रेम दोहा:
प्रेम दोहों में प्रेम का आदान-प्रदान, प्रेम की गहराई और मानवीय संबंधों का भावपूर्ण चित्रण होता है। इसमें प्रेम का सौंदर्य, उसका त्याग और उसकी निष्ठा को व्यक्त किया जाता है।
उदाहरण:
“प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समाय। जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाय॥”*
9. प्रेरणात्मक दोहा:
ये दोहे किसी विशेष उद्देश्य या प्रेरणा को व्यक्त करते हैं। इनमें सफलता, परिश्रम, संघर्ष और लक्ष्य प्राप्ति की बात की जाती है।
उदाहरण:
“मन में हिम्मत धरिये, ना हारो विश्वास। मेहनत फल जब देगी, कटेंगे सब त्रास॥”*
10. सत्संग दोहा:
सत्संग दोहों में अच्छे लोगों की संगति के महत्व और उसके प्रभाव को दर्शाया जाता है। इसमें संतों और सच्चे लोगों के साथ रहने से प्राप्त होने वाले लाभ की बात होती है।
उदाहरण:
“सत्संगति में होय सब, संत करे जो बात। मन निर्मल हो जाय, जैसे दीपक की रात॥”*
11. विरक्ति दोहा:
यह दोहे संसार से विरक्ति, मोह-माया से दूर रहने और आध्यात्मिक उन्नति की बात करते हैं। संत और साधक इस प्रकार के दोहों के माध्यम से सांसारिक मोह-माया की असारता समझाते हैं।
उदाहरण:
“माया महाठगिनी हम जानी, तिरगुन फांस लिए कर डोले। कहे कबीर तीरज राखो, साधु नाव चलानी॥”*
इन प्रकारों के माध्यम से दोहा विविध भावनाओं, विषयों, और जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करता है, जिससे इसे हिंदी काव्य में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
ये छंद हिंदी काव्य में अपनी लय, ताल, और भावनाओं को प्रकट करने के लिए उपयोग होते हैं।