हिंग्लिश
कुछ तथाकथित आधुनिक लोगों ने
मिलकर एक विद्यालय खोला
उन बुद्धिजीवियों का गुरुघंटाल
बैठक में बोला
विद्यालय हमारे दादा-परदादा
घुरहू-कतवारू के नाम पर चलेगा
इसका नाम जी के इण्टर कॉलेज रहेगा
हम हिन्दी और इंग्लिश
दोनों को गहराई से नहीं जानते
इनमें कोई भेदभाव नहीं मानते
इसलिए बच्चों को हिंग्लिश सिखाएंगे
नई भाषा की उत्पत्ति कैसे होती है
यह दुनिया को दिखाएंगे
और कुछ ही दिनों में
हिन्दुस्तान को हिंग्लिस्तान बनाएंगे
तमाम सोच-विचार के बाद
विद्यालय का शुभारम्भ हुआ
और इसी के साथ
अध्यापकों की नियुक्ति हेतु
साक्षात्कार प्रारम्भ हुआ
बहुत से अभ्यर्थी आते और जाते रहे
बोर्ड के सदस्य सबको पलीता लगाते रहे
तभी अवतरित हुआ
एक उच्च शिक्षित बेरोजगार कवि
जैसे प्राची में उदित होता है रवि
उसे देखते ही सदस्यों की बाँछें खिल गईं
मानो मुँहमाँगी मुराद मिल गई
अपने सवालों के अस्त्र-शस्त्र लेकर
सब एक साथ उस पर टूट पड़े
जैसे सरकारी गोदामों पर
अकाल पीड़ित जनता द्वारा अनाजों की लूट पड़े
यह सब देखकर कवि हो गया रुआँसा
क्योंकि उसे नहीं पता था
कैसे उत्पन्न होगी नयी भाषा
छूटते ही जान बचाकर भागा
जी के इण्टर कॉलेज में
अध्यापक बनने का विचार त्यागा
सड़क पर आते ही एक अभिभावक से टकराया
जो था अपने बच्चे के एडमिशन के लिए दर-दर की ठोकर खाया
फ़टे जूते मैली धोती और पैबन्द लगा कुर्ता पहने
घाव से मक्खियाँ भगा रहा था
बेटा गाँव में पला-बढ़ा था
हिन्दी माध्यम से पढ़ा था
इसलिए मेधावी होते हुए भी
फुटपाथ पर फेरियाँ लगा रहा था
दूसरी तरफ सड़क पर दौड़ती
महँगी कारों की कतार
उनमें सवार
अंग्रेजी स्कूलों को जाते होनहार
अरे! यही तो हैं इस देश के भावी कर्णधार
जो भारत को इण्डिया बनाए रखेंगे
‘चपरासी का बेटा चपरासी और अधिकारी का बेटा उच्च अधिकारी’
इस फार्मूले को बचाए रखेंगे
इन विचारों से ‘असीम’ कष्ट में डूबे
कवि की आत्मा हिल गई
पर साथ ही
उन काले अंग्रेजों को तमाचा जड़ने हेतु
एक नई रचना मिल गई
‘अंग्रेजों के मानस-पुत्रों कुछ तो शर्म करो
सत्पुरुषों में गिनती हो, कुछ ऐसा कर्म करो
भारतेन्दु, दिनकर की आत्मा रोती है तुम पर
हिन्दी अपने राष्ट्र की भाषा, इसका धर्म धरो।’
✍🏻 शैलेन्द्र ‘असीम’