हास्य:-हर रोज़ की है कहानी !
काम की तलाश थी,
बहुत जल्दी थी,
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जल्दी पहुँचना था,
मैं तो नहीं पहुंच पाया,
कोई और पहुंच गया,
हररोज़ की कहानियां है,
नहीं है !
कोई सुधार की संभावना !
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कोई लंगड़ा हुआ !
कोई दुनिया से विदा !
किसी को जेल !
किसी को फाँसी !
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अब तक भी नहीं है !
सुधार की संभावना !
न जाने,
कब मिल पाएगी,
वक्त पर दो रोटी !
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पहुँचना था जल्दी देर हो गई !
उसे भी जल्दी थी,
वेंटिलेटर पर था,
मुझे कम जल्दी थी,
मैं जेल में !
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सब्र करो !
महेंद्र !
जल्दी भी क्या है !
थोड़ा कम लिखो !
पढ़ने में रस लेने वाले कहाँ है,
थोड़ा वर्क-लोढ़ अधिक है,
इतनी जल्दी भी क्या है ?
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हररोज़ की है कहानी,
फिर भी है बेईमानी !