हास्य व्यंग्य
रोज-रोज का चिक-चिक झिक-झिक, अब मुझको नही सुहाता
है कसम बस तेरे प्यार की, यह मुझसे सहा न जाता
हुई है प्याज मंहगी तो क्या, तुम प्याज क्यों नही लाए
अगर बजट है तेरे कम तो, थे मुझसे फिर क्यों ब्याहे
दस लाख सिर्फ नकद मिले थे, औ जेवर गाड़ी-घोड़ा
इतना भी क्या कम था जो तुम, फिर मुंह दिखाई पाया
सुनो खोल कर कान प्रिये! तुम, अब मुझसे रहा न जाता
है कसम बस तेरे प्यार की, यह मुझसे सहा न जाता
चलो गर तुम प्याज ना लाए, तो सोना ही दिलवा दो
फिर उसका भी दाम बढ़े ना, कंगना एक बनवा दो
मोदी की सरकार है जब तक, कब क्या हो क्या भरोसा
नोटबंदी फिर हो गई तो, पानी हो जाए पैसा
अगर दिए तुम ये भी ना तो, मुझसे प्रीत क्यों निभाता
है कसम बस तेरे प्यार की, यह मुझसे सहा न जाता
रोज-रोज तो बिल ना लाती, जैसे लाते मोदी जी
संसद में जो हल्ला होता, वो तो मैं ना करती जी
पिछले जैसे शांत खड़े क्यों, तुम सीतारमण बना दो
घर की चाभी रखे कहां हो, अब मेरे हाथ थमा दो
यह भी गर मंजूर नही तो, तुमसे कोई ना नाता
है कसम बस तेरे प्यार की, यह मुझसे सहा न जाता