हास्य-व्यंग्य सम्राट परसाई
हास्य-व्यंग्य सम्राट हैं, परसाई जी आप
गहराई को आपकी, कोई सका न नाप
आप सदा बेजोड़ हैं, कालजयी हर रंग
सिखा दिया है आपने, लिखने का हर ढ़ंग
‘वसुधा’ के हर अंक में, ज्ञान मिला अनमोल
हास्य-व्यंग्य सम्राट को, लोग रहे थे तोल
‘सुनो भई साधो’ रही, ‘नव दुनिया’ का रूप
‘नयी कथाओं में रहा, ‘कालम पाँच’ स्वरूप
‘उलझी–उलझी’ कल्पना, हैं सब हरि के रूप
कहीं घनी छाया मिली, कहीं करारी धूप
जीवन यापन के लिए, हुये अनेकों काम
आयु बहत्तर तक किये, कार्य समस्त तमाम
सामाजिक विसंगतियाँ, सदैव बनी शिकार
भ्रष्टतंत्र पर भी सदा, निर्मम किये प्रहार
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(१.) कहानी–संग्रह:– ”हँसते हैं रोते हैं,” ”जैसे उनके दिन फिरे,” व ”भोलाराम का जीव”।
(२.) उपन्यास:– ”रानी नागफनी की कहानी,” ”तट की खोज,” व ”ज्वाला और जल”।
(३.) निबंध-संग्रह:– ”पगडंडियों का जमाना” (1966 ई०), ”जैसे उनके दिन फिरे” (1963 ई०), ”सदाचार की ताबीज” (1967 ई०), ”शिकायत मुझे भी है” (1970 ई०), ”ठिठुरता हुआ गणतंत्र” (1970 ई०), ”अपनी-अपनी बीमारी” (1972 ई०), ”वैष्णव की फिसलन” (1967 ई०), ”विकलांग श्रद्धा का दौर” (1980 ई०), ”भूत के पाँव पीछे,” ”बेईमानी की परत,” ”सुनो भाई साधो” (1983 ई०), ”तुलसीदास चंदन घिसे” (1986 ई०), ”कहत कबीर” (1987 ई०), ”हँसते हैं रोते हैं,” ”तब की बात और थी,” ”ऐसा भी सोचा जाता है” (1993 ई०), ”पाखण्ड का अध्यात्म” (1998 ई०), ”आवारा भीड़ के खतरे” (1998 ई०), ”प्रेमचंद के फटे जूते”।
(४.) संस्मरण: तिरछी रेखाएँ।
(५.) परसाई रचनावली (सजिल्द तथा पेपरबैक, छह खण्डों में; राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशित)
(६.) हरिशंकर परसाई पर केन्द्रित संपादित तथा अन्य साहित्य:– ”आँखन देखी” – संपादक- कमला प्रसाद (वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशित)। ”देश के इस दौर में” – संपादक- विश्वनाथ त्रिपाठी (राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशित)। ”सुनो भाई साधो”- हरिशंकर परसाई।