*घोर प्रशंसा कौवे की कोयल को करनी पड़ती है (हिंदी गजल/ हास्य गीतिका)*
घोर प्रशंसा कौवे की कोयल को करनी पड़ती है (हिंदी गजल/ हास्य गीतिका)
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(1)
घोर प्रशंसा कौवे की, कोयल को करनी पड़ती है
प्रबल लोमड़ी सिंहों के, ऊपर दिन-रात अकड़ती है
(2)
उल्लू सबसे पूजनीय है, जो धन-दौलत को लादे
उसकी पत्नी कॉलोनी में, सबसे रोज झगड़ती है
(3)
दलबदलू को ही टिकट मिलेगा, लिखकर चाहे रख लो
चॉंदी वाली जूती उसकी, चॉंटा सब को जड़ती है
(4)
लो घोषित हो गए शहर के, वह अगुआ जनसेवी भी
शीर्ष न्यूज एजेंसी जिनसे, पैसा रोज पकड़ती है
(5)
धन्नासेठों को जब भी, देखा तो अकड़ू ही पाया
अलग बात है यह कोई, कुछ कमती कोई बड़ती है
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कमती =कम
बड़ती =अधिक
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451