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30 Jun 2019 · 1 min read

हास्य रचना

जब से लाया हूँ मैं लुगाई को
मैं तरसता हूँ पाई पाई को

पूछती चाय भी नहीं वो मुझे
खुद तो खाये वो रसमलाई को

गल गया है शरीर चिन्ता में
देख कर उसकी धन लुटाई को

एक दिन झाडू और बेलन से
भूला अब तक नहीं पिटाई को

डरते डरते अगर मैं कह दूँ कुछ
झट बुला लेती बाप भाई को

रोज़ रोटी मँगाए होटल से
ख़ुद न जाए कभी सिंकाई को

ये न होती तो कसम से “प्रीतम”
रखता मैं काम वाली बाई को

प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)

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