हास्य दोहा अष्टमी
रहता सदैव हास्य रस, सबके ही अनुरूप
इसके क़दम जहाँ पड़े, विदा दुखों की धूप // 1. //
भोजन तो डटकर किया, ग़ायब चम्मच चार
हास्य रस से भरे उदर, लेते नहीं डकार // 2. //
कमल खिले हैं हास्य के, जहाँ समाई बास
वो पल ही है ज़िन्दगी, बाक़ी सब बकवास // 3. //
बिना हास्य रस के यहाँ, जीवन में है कष्ट
हास्य रस के प्रभाव से, होय मनुसियत नष्ट // 4. //
काका-राका कह गए, हास्य बिना सब सून
शरीर को लज़्ज़त मिले, बढ़े सभी का खून // 5. //
रोते-धोते रात-दिन, क्यों करे ताक-झाँक
कामी-क्रोधी-लालची, धूल रहे बस फाँक // 6. //
मज़े-मज़े में भीगते, पिए हास्य के जाम
मालिक करे न चाकरी, नौकर करे न काम // 7. //
फूट रही बिन हास्य रस, बड़ी-बड़ी तक़दीर
मुक्ति नहीं बिन हास्य के, कहे कवि महावीर // 8. //
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