*हास्य कवि-सम्मेलन का बुलावा (अतुकांत हास्य-कविता)*
हास्य कवि-सम्मेलन का बुलावा (अतुकांत हास्य-कविता)
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हमारे पास पहली-पहली बार एक हास्य कवि सम्मेलन में काव्य-पाठ करने का निमन्त्रण आया,
जीवन में पहली-पहली बार कुछ भी करने में हृदय घबराता है ,हमारा भी घबराया ।
कहीं फ्लाप न हो जाएँ- इस डर से आस-पड़ोस के तीन-चार साथियों को बुलवाया,
उन्हें चाय-नाश्ता कराया ।
फिर समस्या बताई कि जीवन में काव्य-पाठ करने की यह कठिन घड़ी है आई ।
वे बोले “हमें कविता लिखना नहीं आता है?”
हमने कहा “यह काम तुमसे कौन करवाता है?
तुम्हें तो केवल यह जिम्मेदारी निभानी है
कि जब हम हास्य-कविता पढें , तो तुम्हें हँसना है और ताली बजानी है।
हमारे यह साथी कुछ ज्यादा ही टेक्निकल इन्सान थे,जीनियस थे, महान थे।
बोले “तालियाँ किस तरह बजाते हैं?
क्या वैसी ही, जब हम सत्संग में जाते हैं ?
या सैनिकों की तरह आपके आदेश पर बजाएँ ?
सैनिक ताली शुरू – एक- दो-तीन- कहकर बैठ जाएँ ?
फिर प्रश्न यह भी है कि कितनी देर तक बजानी है ?
लगातार बजानी है कि रूक-रूक कर ड्यूटी निभानी है ?
अगर अपने आप बजानी है तो ठीक से बताइए,
ढंग से बैठकर चार-छह बार कविता को गाकर सुनाइए ।
फिर हम घर पर जाकर कविता को पढ़ेंगे और याद करेंगे।
और हाँ ! हँसना कैसे हैं?
चिड़िया की तरह
या शेर के जैसे हैं ?
हँसते समय मुँह बंद रखें या खोलें ?
दो – चार दाँत दिखाएँ या पूरी बत्तीसी टटोलेंं ?
हँसने की रफ्तार का क्रम भी तो बताइए ? एक तो यह होता है कि शुरू में हल्के हँसे फिर रफ़्तार बढ़ाएँ,
या शुरू से ही बुलेट ट्रेन भारत में ले आएँ ?
कोर्स कितने दिन का आप चलाएँगे ?
प्रशिक्षण आप ही देंगे, या बाहर से अध्यापक बुलाएँगे ?
पारिश्रमिक पहले से ही तय हो जाए, तो ठीक होगा वरना बाद में झगड़ा रहेगा, आपस में हर कोई एक दूसरे को बुरा कहेगा।”
हमने कहा “नालायको ! अभी तो केवल हवा में बात है ,
हास्य कवि सम्मेलन के आयोजन के विचार की शुरुआत है !
पारिश्रमिक हम तुमसे क्या ठहराएँ ?
हमें ही नहीं पता कि हमें भी कुछ मिलेगा या केवल धन्यवाद देकर ही आयोजक काम चलाएँ ?
अब हमने सोच लिया है कि किसी को तालियाँ बजाने के लिए साथ लेकर नहीं जाना है ,
अपने ही बलबूते हास्य कवि सम्मेलन को आजमाना है ।
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451