हाशिए पर ज़िंदगी
किताब का पेज पलट देने पर भी
कई बार पुराने पेज के किरदार
फिर नए पेज पर कूद के आ जाते है।
मैं किताब के पिछले पेज
अगला पेज पढ़ते समय
याद करना नहीं चाहता
पर पुराने पेज अक्स
याका यक उभर आते है।
पुरानी यादों से पीछा छुड़ाना
आसान नहीं होता
ज़िंदगी के पेज कितने पलटो
कुछ स्थायी सा हर पेज पर
एक सा ही छपा होता है
वर्तमान में भूत का शामिल
होना लाज़मी है
इन कालों बँटवारा
बहुत पुख्ता नहीं होता
डा राजीव “सागरी”