“. . . हाल गये ।”
( यह हास्य गज़ल हैं , इसमें इक तोतला प्रेमी अपने प्रेमिका से दिल का दर्द बयां कर रहा हैं ! . . . )
तेले प्याल में ज़ानू इसकदल हाल गये ।
बेमौत अपने – आप को ही हम माल गये ।
समज़ में नहीं आयी , थी ख़ता तेली या मेली ,
दूल कुछ पहले , कुछ बाद दोस्त – याल हुये ।
तुझे देवी बनाया मेले प्याल के मंदिल की ,
अब उसी घल – मंदिल के बियल – बाल हुये ।
क्यां कले ? इस के अलावा कुछ कल ना सका ,
हम तो भली ज़वानी में अब बेकाल हुये ।
युं आस थी तेले घल को ससुलाल बनाऊँ ,
तेले घल के माली तक से इनकाल हुये ।
इक हसलत थी की , तेली ड़ोली उठा लावु ;
अब अलमानों के अल्थी के कंधे चाल हुये ।
इस फ़कील के झोली से कैसें इलाज़ होगा ?
उस कातील निगाहों से गहले वाल हुये ।
व्यापाली बाप उसका दिल बेचने बैठा हैं ,
लगता हैं , अब तो चाहतों के बाज़ाल हुये ।
– शायर : प्रदिपकुमार साख़रे
+917359996358.